वायरल हुई ऊंट की फोटो, लोग कह रहे आत्महत्या कर ली
राजस्थान का राज्य पशु रेगिस्तान के जहाज से मानव तो भौतिक भंवरजाल से जकड़े रूठे ही है परंतु लगता है आज भदवान भी रूठ गए है। एक समय था जब ऊंट मानव का बहुत बड़ा सहयोगी हुआ करता था। खेती से लेकर आने-जाने तक में ऊंट का प्रयोग हुआ करता था। राजस्थान के इन स्थान्तरीत होते रेतीले धोरों की शान हुआ करता था ऊंट! तभी तो इसे रेगिस्तान के जहाज़ 🚢 कहा गया।
राजस्थान की शान, धोरों पर अपने गद्दी लगे पैरों से सरपट भागने वाले ऊंट को मानों आज मानव की नज़र लग गयी है। तभी तो देश भर के 80% ऊंट (3.26लाख/वर्ष 2012) से इन बीते सात वर्षों में 35 फीसदी की कमी (2.13लाख/वर्ष 2019) आई है। वहीं देश में वर्ष 2012 में 4 लाख ऊंट थे जो वर्ष 2019 में आकर घटते-घटते 2.5 लाख हो गए हैं। विगत दिनों अग्नि नृत्य से परेशान आस्ट्रेलियाई सरकार में ऊंटो को मारने का ऑर्डर जारी किया। जिसकी समूचे विश्व भर किरकिरी हुई।
मानव की ऊंटों के प्रति बेरुखी से इनकी दुर्दशा किसी से छिपी हुई नहीं है। आए दिन ऊंट तस्करी के मामले राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में उजगार होते हैं। ध्यातव्य रहे राजस्थान सरकार ने जब से ऊंट को राज्य पशु घोषित किया है इसके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे है । राज्य का पशु घोषित तो कर दिया लेकिन किसी भी पशु चिकित्सालय में ऊंटो के टीके तक उपलब्ध नहीं है। ऊंट पालक जैसे-तैसे देशी दवा-दारु से काम चला रहे हैं। परन्तु राज्य सरकार ने ऊंट की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से ऊंट पालकों को प्रोत्साहन राशि के तौर पर 10 हजार रुपए की राशि( तीन किस्तों में) भी ऊंटनी के शिशु की देखभाल के लिए देने की योजना बनाई लेकिन उससे भी ऊंट पालक या तो जागरुकता के अभाव में वंचित है या उन्हें समय पर निर्धारित राशि नहीं मिल रही है। साथ राज्य पशु क्या घोषित किया लोग पालने से ही डरने लगे। पशु क्रुरता अधिनियम तो सभी पशुओं के लिए है । लेकिन उसका प्रभाव शून्य से ज्यादा नहीं है। राज्य पशु का दर्जा प्राप्त होते ही ऊंट पहली तस्वीर की हालात में जा पहुंचा है । तस्वीर को देखते ही प्रतीत होता है कि मानव की भांति अब जानवर भी आत्महत्या करने लगे है । लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, वृक्ष की दो शाखाओं के मध्य संभवतः खुजलाने की दशा में गर्दन उलझने से ऊंट मृत्यु हो गई । द्वितीय तस्वीर ऊंटनी के मातृत्व के उस दर्द को दिखा रहा है जिसमें उसके नवजात की मृत्यु संभवतः इलाज के अभाव में हुई है। जब बात छेड़ ही दी है तो एक बात और बता दूं रे भौतिकी मानवों एक समय था जब हमारे पुर्वजों की बरात ऊंटो पर जाती थी, गोरबन्ध से सुसज्जित ऊंट कितने अच्छे लगते थे और उपर से सवार अपनी कला से रुणक-झुणक ऊंट को नचाता, भगाता कला दिखाता! और आज ऊंट नाम से भी हमें चिढ़ आती है, मानों ऊंट हमें खाने को दौड़ रहा हो। हमारी इस बेहूदा करतूत से हमारे पूर्वज भी लज्जातें होंगे। प. राजस्थान की Life Line राजस्थान नहर(वर्तमान नाम IGNP) की खुदाई में ऊंटों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। डॉ एल आर भल्ला के अनुसार "विश्व के चारों और लगभग 4 फुट मोटी व 20 फुट चौड़ी सड़क बन जाए इतनी मिट्टी की ढुवाई राजस्थान नहर की खुदाई से हुई। तो इस क्षैत्र के लोगों के लिए तो ऊंट देव से कम नहीं है। फिर हम क्यों कोताही बरत रहे हैं 🐪 के संरक्षण व संवर्धन से!
तो आइए हम सब मिलकर राज्य पशु "रेगिस्तान के जहाज" को बचाने कृत संकल्पित होकर आगे बढ़े। राज्य की शान "रेगिस्तान के जहाज" से है, हमारा कर्तव्य है इस शान को बनाए रखने का!
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